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67 की उम्र में भी घुटनों का ऑपरेशन टला—Ayurveda ने कैसे फिर से चलने की ताकत दी?

Information By Dr. Arun Gupta

67 वर्ष की उम्र में जब घुटनों के ऑपरेशन की सलाह मिल चुकी थी, तब Ranveer Singh को आयुर्वेद से एक नई उम्मीद मिली। लगातार घुटनों का दर्द शϤ पाचन की दिक्कत ने उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी कठिन बना दी थी। जीवाग्राम में पंचकर्म, Janu Basti शϤ Abhyanga से उन्हें राहत मिली शϤ दर्द में बहुत कमी आई। सात्त्विक भोजन, सही दिनचर्या शϤ शांत वातावरण ने उनके स्वास्थ्य को भीतर से मज़बूत किया। आज उनकी चलने-फिरने की शक्ति बेहतर है शϤ ऑपरेशन की आवश्यकता टल चुकी है—यह बदलाव आयुर्वेद की समग्र देखभाल से संभव हुआ।

भारत में घुटनों शϤ जोड़ों के दर्द की समस्या बहुत आम है। अनुसंधानों के अनुसार देश में वृद्ध वयस्कों में लगभग 47% लोगों को घुटनों में ऑस्टियोआर्थराइटिस (degenerative knee pain) से जुड़ी तकलीफ रहती है, जो उम्र के साथ बढ़ती जाती है शϤ चलने-फिरने की क्षमता को प्रभावित करती है। 

यह समस्या सिर्फ दर्द तक सीमित नहीं रहती, बल्कि रोज़मर्रा की गतिविधियाँ जैसे उठना, बैठना शϤ सीढ़ियाँ चढ़ना भी कठिन बना देती है। जब आपकी उम्र बढ़ती है, तो घुटनों के जोड़ पर उम्र शϤ वजन का दबाव शϤ भी अधिक प्रभाव डालता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता गिरने लगती है।

Ranveer Singh, 67 वर्ष, दिल्ली के निवासी, इसी समस्या से जूझ रहे थे। उन्हें घुटनों का लगातार दर्द शϤ पाचन संबंधी खराबी ने कई सीमाएँ दी थीं। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी, लेकिन उपाय ढूँढते हुए उन्होंने आयुर्वेद शϤ पंचकर्म की ओर रुख किया। आयुर्वेदिक उपचार ने न केवल उनके दर्द को कम किया, बल्कि उनके जीवन में एक नई ऊर्जा शϤ चलने की स्वतंत्रता भी लौटाई।

यह कहानी सिर्फ एक मरीज़ की नहीं है, बल्कि उन हज़ारों लोगों की भी है जिन्हें आप रोज़ अपने आस-पास देखते होंगे—जो अपनी उम्र के साथ चलने-फिरने में कठिनाई महसूस करते हैं शϤ विकल्प ढूँढ रहे हैं। इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि यह समस्या क्यों होती है, शϤ आयुर्वेद इसमें कैसे मदद कर सकता है।

बढ़ती उम्र में घुटनों का दर्द जीवन को कैसे सीमित करने लगता है?

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर के जोड़ पहले जैसे मज़बूत नहीं रहते। घुटने खासतौर पर सबसे ज़्यादा असर झेलते हैं, क्योंकि पूरे शरीर का भार इन्हीं पर पड़ता है। शुरू में दर्द हल्का होता है—कभी चलते समय, कभी सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त। लेकिन धीरे-धीरे यही दर्द रोज़मर्रा की ज़िंदगी को सीमित करने लगता है।

आपने अक्सर देखा होगा कि घुटनों के दर्द के कारण लोग बाहर निकलना कम कर देते हैं। सुबह की सैर छूट जाती है, पूजा-पाठ के लिए ज़मीन पर बैठना मुश्किल हो जाता है शϤ लंबी दूरी चलना डर का कारण बन जाता है। दर्द के साथ-साथ जकड़न भी बढ़ती है, खासकर सुबह उठते समय। कई बार तो कुर्सी से उठने में भी सहारे की ज़रूरत पड़ने लगती है।

रणवीर सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। 67 वर्ष की उम्र में उनके लिए चलना-फिरना आसान नहीं रह गया था। घुटनों में लगातार दर्द रहता था, जिससे उनका आत्मविश्वास भी कम होने लगा था। जब आप अपने रोज़ के काम खुद न कर पाएं, तो मन पर उसका गहरा असर पड़ता है। दूसरों पर निर्भरता बढ़ने लगती है शϤ भीतर एक बेचैनी घर कर जाती है।

घुटनों का दर्द सिर्फ शारीरिक समस्या नहीं रहता। यह आपकी स्वतंत्रता को धीरे-धीरे छीनने लगता है। जब आप कहीं जाने से पहले यह सोचने लगें कि रास्ते में दर्द बढ़ गया तो क्या होगा, तब समझ लीजिए कि समस्या सिर्फ घुटनों तक सीमित नहीं रही। रणवीर सिंह भी इसी दौर से गुज़र रहे थे, जहाँ हर कदम सोच-समझकर रखना पड़ता था।

रणवीर सिंह की समस्या घुटनों के अलावा शϤ शरीर के किस भाग को प्रभावित कर रही थी?

अक्सर ऐसा माना जाता है कि घुटनों का दर्द सिर्फ जोड़ों की समस्या है, लेकिन सच यह है कि शरीर के अंदरूनी असंतुलन भी इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। रणवीर सिंह के मामले में भी घुटनों के साथ-साथ पेट की गड़बड़ी एक बड़ी परेशानी थी।

उन्हें लंबे समय से पाचन ठीक नहीं रहता था। कभी भारीपन, कभी गैस, तो कभी भूख न लगना—ये सब समस्याएँ साथ-साथ चल रही थीं। जब पेट ठीक से काम नहीं करता, तो शरीर को सही पोषण नहीं मिल पाता। इसका सीधा असर ताकत शϤ सहनशक्ति पर पड़ता है। आप खुद महसूस करेंगे कि जब पेट खराब रहता है, तो पूरे शरीर में थकान बनी रहती है

रणवीर सिंह को भी यही अनुभव हो रहा था। कमज़ोरी बढ़ती जा रही थी शϤ शरीर जल्दी थक जाता था। घुटनों का दर्द शϤ पेट की परेशानी—दोनों मिलकर उनकी दिनचर्या को शϤ कठिन बना रहे थे। ऐसे में सिर्फ दर्द दबाने से राहत मिलना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि असली कारण शरीर के भीतर छिपा होता है।

आयुर्वेद इसी अंदरूनी असंतुलन को समझने पर ज़ोर देता है। जब पाचन ठीक नहीं होता, तो शरीर में गड़बड़ी बढ़ती जाती है शϤ उसका असर जोड़ों तक पहुँचता है। रणवीर सिंह की कहानी यह दिखाती है कि जब समस्या एक से ज़्यादा जगहों पर हो, तो इलाज भी पूरे शरीर को ध्यान में रखकर होना चाहिए।

आयुर्वेद में घुटनों के दर्द को किस तरह देखा जाता है?

आयुर्वेद घुटनों के दर्द को सिर्फ हड्डियों या जोड़ की समस्या नहीं मानता। आयुर्वेद के अनुसार, यह दर्द अक्सर शरीर के भीतर बढ़े हुए वात दोष से जुड़ा होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर में सूखापन बढ़ने लगता है। यही सूखापन जोड़ो में पहुँचकर उनकी चिकनाई कम कर देता है, जिससे घुटनों में दर्द, जकड़न शϤ आवाज़ आने जैसी समस्याएँ शुरू होती हैं।

आपने महसूस किया होगा कि ठंड में या लंबे समय तक बैठे रहने के बाद घुटने ज़्यादा अकड़ जाते हैं। यह वात के बढ़ने का ही संकेत माना जाता है। जब जोड़ो के बीच की प्राकृतिक चिकनाई कम हो जाती है, तो हड्डियाँ आपस में रगड़ खाने लगती हैं। इससे दर्द बढ़ता है शϤ चलना-फिरना कठिन हो जाता है।

रणवीर सिंह के मामले में भी यही स्थिति बन रही थी। उम्र के साथ उनके शरीर में वात बढ़ गया था, जिससे घुटनों की ताकत शϤ लचीलापन कम होने लगा। आयुर्वेद यह मानता है कि अगर समय रहते वात को संतुलित किया जाए शϤ जोड़ो को फिर से पोषण मिले, तो दर्द को बढ़ने से रोका जा सकता है।

आयुर्वेद का उद्देश्य सिर्फ दर्द दबाना नहीं होता, बल्कि शरीर के उस असंतुलन को ठीक करना होता है, जो दर्द की जड़ में होता है। यही वजह है कि इलाज में शरीर, भोजन शϤ दिनचर्या—तीनों पर एक साथ ध्यान दिया जाता है।

पंचकर्म क्या है शϤ यह घुटनों के दर्द में कैसे मदद करता है?

पंचकर्म आयुर्वेद की एक गहरी शुद्धि प्रक्रिया मानी जाती है। आसान शब्दों में कहें, तो यह शरीर के भीतर जमी गंदगी शϤ असंतुलन को बाहर निकालने का तरीका है। जब शरीर के अंदर लंबे समय से गड़बड़ी जमा हो जाती है, तो उसका असर जोड़ों पर भी दिखने लगता है।

आप इसे ऐसे समझ सकते हैं—अगर किसी मशीन में लंबे समय तक गंदा तेल चलता रहे, तो उसके पुर्ज़े घिसने लगते हैं। पंचकर्म शरीर के लिए वही काम करता है, जो मशीन के लिए साफ़ शϤ सही तेल करता है।

घुटनों के दर्द में पंचकर्म का उद्देश्य होता है:

  • शरीर से बढ़े हुए वात को शांत करना

  • जोड़ो की सूखापन को कम करना

  • भीतर से ताकत शϤ संतुलन लौटाना

रणवीर सिंह के लिए पंचकर्म सिर्फ एक उपचार नहीं था, बल्कि शरीर को दोबारा सँभालने की प्रक्रिया थी। धीरे-धीरे शरीर हल्का महसूस होने लगा शϤ जकड़न में कमी आने लगी। जब शरीर अंदर से साफ़ होता है, तो दवाइयों शϤ थेरेपी का असर भी बेहतर दिखाई देने लगता है।

Janu Basti शϤ Abhyanga से शरीर में क्या बदलाव महसूस हुआ?

Janu Basti शϤ Abhyanga जैसी थेरेपी घुटनों के दर्द में खास भूमिका निभाती हैं। ये थेरेपी सीधे उस जगह पर काम करती हैं, जहाँ दर्द शϤ जकड़न ज़्यादा होती है।

Janu Basti में घुटनों के चारों ओर गर्म औषधीय तेल को कुछ समय तक रखा जाता है। इससे जोड़ो में गर्माहट पहुँचती है शϤ सूखापन कम होता है। रणवीर सिंह ने महसूस किया कि कुछ सत्रों के बाद घुटनों की अकड़न कम होने लगी शϤ दर्द धीरे-धीरे हल्का पड़ने लगा।

Abhyanga में पूरे शरीर की तेल से मालिश की जाती है। यह सिर्फ मांसपेशियों को आराम नहीं देती, बल्कि नसों को भी शांत करती है। जब शरीर को नियमित रूप से तेल का पोषण मिलता है, तो चलने-फिरने में सहजता आने लगती है।

इन थेरेपी के बाद रणवीर सिंह के लिए चलना पहले से आसान हो गया। जो काम पहले दर्द की वजह से टल जाते थे, वे अब बिना ज़्यादा परेशानी के होने लगे। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि धीरे-धीरे शϤ स्थिर रूप से महसूस हुआ।

आप अगर घुटनों के दर्द से जूझ रहे हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि राहत एक दिन में नहीं मिलती। आयुर्वेद में समय, धैर्य शϤ नियमितता को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाता है। रणवीर सिंह की यात्रा यही दिखाती है कि जब इलाज शरीर के अनुसार किया जाए, तो बढ़ती उम्र में भी चलने की ताकत वापस पाई जा सकती है।

क्या सिर्फ थेरेपी ही काफी होती है या दिनचर्या भी उतनी ही ज़रूरी है?

अक्सर ऐसा लगता है कि अगर सही थेरेपी मिल जाए, तो दर्द अपने-आप ठीक हो जाएगा। लेकिन आयुर्वेद ऐसा नहीं मानता। आयुर्वेद के अनुसार, थेरेपी उतनी ही असरदार होती है, जितनी आपकी दिनचर्या संतुलित होती है। अगर रोज़मर्रा की आदतें वही पुरानी रहें, तो राहत टिक नहीं पाती।

आप खुद सोचिए—अगर घुटनों में दर्द है शϤ फिर भी देर रात तक जागना, अनियमित खाना या लंबे समय तक बैठे रहना जारी रहे, तो शरीर कैसे सुधरेगा? रणवीर सिंह के मामले में भी यही समझाया गया कि इलाज सिर्फ उपचार कक्ष में नहीं, बल्कि पूरे दिन में चलता है।

जीवाग्राम में उनकी दिनचर्या को धीरे-धीरे व्यवस्थित किया गया। समय पर उठना, समय पर भोजन, हल्की गतिविधि शϤ पर्याप्त विश्राम—इन सबका एक तय क्रम था। इस अनुशासन से शरीर को यह संकेत मिलने लगा कि अब उसे संभलने का समय दिया जा रहा है।

दिनचर्या का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि शरीर अपनी लय में वापस आने लगता है। जकड़न कम होने लगती है, नींद बेहतर होती है शϤ दर्द की तीव्रता धीरे-धीरे घटती है। रणवीर सिंह ने भी महसूस किया कि जब शरीर को नियमितता मिलती है, तो थेरेपी का असर शϤ गहरा हो जाता है।

आपके लिए भी यह समझना ज़रूरी है कि घुटनों का दर्द सिर्फ इलाज से नहीं, बल्कि सही जीवनशैली से काबू में आता है। दिनचर्या वह आधार है, जिस पर पूरा उपचार टिका होता है।

निष्कर्ष

रणवीर सिंह की कहानी यह याद दिलाती है कि उम्र बढ़ने के साथ आने वाली परेशानियाँ जीवन का अंत नहीं होतीं। जब घुटनों का दर्द चलने से रोकने लगे शϤ ऑपरेशन ही एकमात्र रास्ता दिखे, तब भी सही दिशा में लिया गया फैसला बदलाव ला सकता है। इस यात्रा में आयुर्वेद ने सिर्फ दर्द को नहीं, बल्कि पूरे शरीर शϤ मन को संभालने का काम किया। धीरे-धीरे दिनचर्या सुधरी, भोजन बदला शϤ उपचार ने शरीर को भीतर से सहारा दिया। इसका असर सिर्फ घुटनों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि जीवन में फिर से आत्मविश्वास लौटा।

अगर आप भी महसूस करते हैं कि दर्द की वजह से आपकी आज़ादी सीमित हो रही है, तो यह कहानी आपको रुकने की नहीं, आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। सही समय पर लिया गया सही उपचार जीवन की दिशा बदल सकता है।

अगर आप भी घुटनों के दर्द या इससे जुड़ी किसी शϤ समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श के लिए संपर्क करें। डायल करें: 0129-4264323

FAQs

घुटनों का दर्द बढ़ती उम्र में क्यों बढ़ने लगता है? 

उम्र बढ़ने पर जोड़ो की चिकनाई कम हो जाती है। इससे घुटनों में जकड़न, दर्द शϤ चलने में परेशानी बढ़ने लगती है, खासकर सुबह या आराम के बाद।

क्या हर घुटनों के दर्द में ऑपरेशन ज़रूरी होता है? 

नहीं। अगर समय रहते सही देखभाल, उपचार शϤ दिनचर्या अपनाई जाए, तो कई मामलों में ऑपरेशन टल सकता है या उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती।

आयुर्वेद घुटनों के दर्द को कैसे देखता है? 

आयुर्वेद इसे शरीर के भीतर बढ़े वात शϤ सूखेपन से जोड़कर देखता है। इलाज का लक्ष्य कारण को संतुलित करना होता है, न कि सिर्फ दर्द दबाना।

पंचकर्म से घुटनों के दर्द में क्या लाभ मिल सकता है? 

पंचकर्म शरीर के भीतर जमा असंतुलन को बाहर निकालने में मदद करता है। इससे जकड़न कम होती है शϤ थेरेपी का असर बेहतर महसूस होता है।

क्या भोजन सच में घुटनों के दर्द को प्रभावित करता है? 

हाँ। गलत भोजन पाचन बिगाड़ता है शϤ शरीर को सही पोषण नहीं मिलता। जब भोजन हल्का शϤ संतुलित होता है, तो जोड़ो को भी बेहतर सहारा मिलता है।

दिनचर्या बदलने से घुटनों के दर्द में कैसे फर्क पड़ता है? 

नियमित दिनचर्या से शरीर को आराम शϤ संतुलन मिलता है। सही समय पर उठना, खाना शϤ विश्राम करने से दर्द धीरे-धीरे कम होने लगता है।

कब आपको आयुर्वेदिक उपचार पर विचार करना चाहिए? 

जब दर्द लंबे समय से बना हो, दवाइयों से सिर्फ अस्थायी राहत मिल रही हो या ऑपरेशन की सलाह मिल चुकी हो, तब आयुर्वेदिक मार्ग पर विचार किया जा सकता है।

क्या घुटनों का दर्द मौसम बदलने पर ज़्यादा महसूस होता है? 

हाँ। ठंड या नमी में जोड़ो की जकड़न बढ़ सकती है। इससे दर्द ज़्यादा महसूस होता है, खासकर सुबह या लंबे समय तक बैठे रहने के बाद।

क्या घुटनों के दर्द में पूरी तरह आराम करना सही होता है?

नहीं। पूरी तरह आराम करने से जोड़ शϤ ज़्यादा अकड़ सकते हैं। हल्की गतिविधि शϤ सही देखभाल से घुटनों में लचीलापन बना रहता है।

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