ϳԹ

ϳԹ Search
Close Button
 
 

100 दिनों में Diabetes Reverse! Ayurveda ने कैसे 8.5 से 5.5 तक गिराया HbA1c

Information By Dr. Arun Gupta

2014 में डायबिटॶज़ की पहचान के बाद Abhishek Mal लगातार दवाओं पर निर्भर होते चले गए। मेडिसिन रिसर्च साइंटिस्ट होने के कारण वे जानते थे कि यह इलाज अक्सर डोज़ बढ़ने की दिशा में जाता है। 2023 में जब HbA1c 8.5 तक पहुँचा, तब उन्होंने आयुर्वेद की ओर रुख किया। जीवा आयुर्वेद के Diabetes Management Program के तहत व्यक्तिगत डाइट, मॉनिटरिंग और मार्गदर्शन शुरू हुआ। सिर्फ 100 दिनों में HbA1c 5.5 तक आ गया, जो सामान्य सीमा में है। यह बदलाव देखकर अभिषेक मल ही नहीं, उनके आसपास के लोग भी चकित रह गए।

भारत में डायबिटॶज़ अब सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है। ICMR–INDIAB स्टडी (2023), जो भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आती है, उसके अनुसार भारत में 10 करोड़ से ज़्यादा वयस्क डायबिटॶज़ से प्रभावित हैं, और इससे भी अधिक लोग प्रीडायबिटॶज़ की स्थिति में हैं।

यह आँकड़ा इसलिए चिंताजनक है क्योंकि डायबिटॶज़ अक्सर चुपचाप बढ़ती है, बिना ज़्यादा शोर किए, बिना तुरंत दर्द दिए। बहुत से लोग तब जागते हैं जब रिपोर्ट में शुगर बढ़ चुकी होती है और दवाओं की मात्रा भी। अभिषेक मल की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही।

एक मेडिसिन रिसर्च साइंटिस्ट होने के बावजूद, जब उन्हें 2014 में डायबिटॶज़ का पता चला, तो शुरुआत दवाओं से ही हुई। समय के साथ उन्हें यह एहसास होता गया कि अगर सिर्फ शुगर के नंबर पर ध्यान दिया गया और शरीर के अंदरूनी संतुलन को नज़रअंदाज़ किया गया, तो यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।

2023 में जब दोबारा लक्षण उभरे और HbA1c 8.5 तक पहुँच गया, तब सवाल सिर्फ इलाज का नहीं था, बल्कि सही दिशा चुनने का था। यही वह मोड़ था जहाँ जीवा आयुर्वेद का Diabetes Management Program उनकी यात्रा का हिस्सा बना।

यह ब्लॉग डायबिटॶज़ को एक बीमारी के रूप में समझाने के साथ-साथ अभिषेक मल की उसी यात्रा को सामने रखता है, जहाँ सिर्फ शुगर घटाना लक्ष्य नहीं था, बल्कि शरीर को फिर से संतुलन में लाना मकसद बना।

डायबिटॶज़ क्या होती है और यह समस्या Abhishek Mal के जीवन में कैसे शुरू हुई?

डायबिटॶज़ एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर खून में मौजूद शर्करा को ठीक तरह से नियंत्रित नहीं कर पाता। सामान्य हालात में शरीर शर्करा को ऊर्जा में बदल लेता है, लेकिन जब यह प्रक्रिया बिगड़ जाती है, तो शर्करा खून में बढ़ने लगती है। यही बढ़ी हुई शर्करा धीरे-धीरे शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है।

अक्सर यह बीमारी चुपचाप बढ़ती है। शुरुआत में कोई तेज़ दर्द या बड़ा संकेत नहीं मिलता। बस बार-बार पेशाब आना, जल्दी थक जाना, ज़्यादा प्यास लगना जैसे लक्षण दिखते हैं, जिन्हें कई लोग मामूली समझकर टाल देते हैं। अगर आप भी इन संकेतों को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो बीमारी अंदर ही अंदर जड़ें जमाती चली जाती है।

अभिषेक मल के जीवन में भी यही हुआ। वर्ष 2014 में पहली बार उन्हें बार-बार पेशाब आना और शरीर में कमजोरी महसूस होने लगी। जाँच करवाई गई तो डायबिटॶज़ की पुष्टि हुई। उस समय यह उनके लिए एक झटका था, क्योंकि वे खुद मेडिसिन रिसर्च के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और बीमारी की गंभीरता को भली-भाँति समझते थे।

मेडिकल बैकग्राउंड होने के बावजूद बीमारी का असर उन पर भी वैसा ही पड़ा, जैसा आम लोगों पर पड़ता है। जानकारी होने से बीमारी रुक नहीं जाती। शुरुआती चरण में एलोपैथिक दवाइयाँ शुरू की गईं। शुगर के आँकड़े कुछ समय के लिए नियंत्रित भी हुए, लेकिन इसके साथ ही एक सवाल उनके मन में लगातार बना रहा—क्या यही रास्ता जीवन भर चलना होगा?

शुरुआती दवाइयों से उन्हें यह समझ आने लगा कि इलाज सिर्फ शर्करा के आँकड़ों तक सीमित है। शरीर के बाकी असंतुलन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। उस समय भले ही स्थिति संभली हुई लग रही थी, लेकिन भीतर एक असहजता धीरे-धीरे पनपने लगी, जिसे वे नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहे थे।

Allopathic दवाओं के साथ डायबिटॶज़ का इलाज अभिषेक मल को क्यों असहज लगने लगा?

डायबिटॶज़ के एलोपैथिक इलाज में अक्सर एक बात समान होती है—समय के साथ दवाओं की मात्रा बढ़ती जाती है। शुरुआत में कम दवा, फिर थोड़ी ज़्यादा, और फिर आगे चलकर और बढ़ोतरी। अभिषेक मल इस पैटर्न को अच्छी तरह समझते थे।

एक रिसर्च साइंटिस्ट होने के नाते उन्हें दवाओं के असर और उनके लंबे समय तक उपयोग के परिणामों की जानकारी थी। यही कारण था कि उनके मन में डोज़ बढ़ने का डर साफ़ तौर पर मौजूद था। वे जानते थे कि एक बार अगर शरीर बाहरी दवाओं पर पूरी तरह निर्भर हो गया, तो उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।

आजीवन दवा पर निर्भरता की चिंता उन्हें भीतर से परेशान करने लगी। सवाल सिर्फ दवा खाने का नहीं था, सवाल यह था कि क्या शरीर कभी खुद से संतुलन बना पाएगा या नहीं। अगर आप भी डायबिटॶज़ से जूझ रहे हैं, तो शायद यह सवाल आपके मन में भी आता होगा—क्या यह सिलसिला कभी रुकेगा?

अभिषेक मल के लिए यह सिर्फ एक मरीज़ की चिंता नहीं थी, बल्कि एक वैज्ञानिक की समझ भी थी। वे जानते थे कि शर्करा बढ़ना सिर्फ एक संकेत है, असली समस्या शरीर के अंदर गहरे स्तर पर होती है। इसी सोच ने उनके मन में यह भाव पैदा किया कि यह इलाज एक अंतहीन चक्र बनता जा रहा है—जहाँ दवा बढ़ती है, लेकिन समाधान दूर ही रहता है।

2023 में दोबारा बढ़ी शुगर ने क्या चेतावनी दी?

समय बीतने के साथ अभिषेक मल को फिर से वही पुराने लक्षण महसूस होने लगे। बार-बार पेशाब आना, जल्दी थक जाना और दिनभर ऊर्जा की कमी। ये संकेत साफ़ थे, लेकिन इस बार वे इन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते थे।

जाँच करवाई गई तो रिपोर्ट ने साफ़ चेतावनी दी। खून में शर्करा का स्तर फिर से बढ़ चुका था और एचबीए1सी का आँकड़ा 8.5 तक पहुँच गया था। यह स्तर बताता है कि पिछले कई महीनों से शर्करा लगातार नियंत्रण से बाहर रही है।

यह स्थिति सिर्फ रिपोर्ट का मामला नहीं थी। यह शरीर की तरफ़ से एक साफ़ संदेश था कि मौजूदा रास्ता सही दिशा में नहीं जा रहा। अगर आप भी ऐसी रिपोर्ट देखते हैं, तो भीतर एक डर पैदा होना स्वाभाविक है—आगे क्या होगा? इलाज किस दिशा में जाएगा?

अभिषेक मल के सामने भी यही असमंजस था। वे जानते थे कि अगर फिर से एलोपैथिक डॉक्टर से मिलेंगे, तो दवाओं की मात्रा बढ़ेगी। लेकिन भीतर से वे इस रास्ते को दोहराना नहीं चाहते थे। यह वह मोड़ था जहाँ उन्हें सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि सोच बदलने की ज़रूरत महसूस हुई।

2023 की यह चेतावनी उनके जीवन में बदलाव का कारण बनी। यही वह समय था जब उन्होंने शरीर को समझने, उसे संतुलन में लाने और बीमारी को जड़ से देखने का फैसला किया—एक ऐसे रास्ते की ओर, जो आगे चलकर उनकी कहानी को नई दिशा देने वाला था।

Ayurveda की ओर रुख करने का फैसला कैसे लिया गया?

जब बार-बार रिपोर्ट में बढ़ी हुई शर्करा दिखाई देने लगी और इलाज का रास्ता फिर से वही दवाओं वाला नज़र आने लगा, तब अभिषेक मल ने रुककर सोचना ज़रूरी समझा। वे जानते थे कि समस्या सिर्फ शर्करा बढ़ने की नहीं है, बल्कि शरीर के अंदर कुछ ऐसा असंतुलन है जिसे अब तक सही तरह से समझा ही नहीं गया।

आयुर्वेद के बारे में उन्हें पहले से बुनियादी जानकारी थी। एक रिसर्च साइंटिस्ट होने के कारण वे यह भी समझते थे कि आयुर्वेद सिर्फ लक्षण दबाने की बात नहीं करता, बल्कि शरीर की जड़ तक जाकर कारण खोजने की कोशिश करता है। यही सोच उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने लगी।

इसी दौरान उन्हें जीवा आयुर्वेद के बारे में जानकारी मिली। यहाँ इलाज सिर्फ दवा देने तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे शरीर और जीवनशैली को ध्यान में रखकर किया जाता था। यह बात उन्हें भीतर से सही लगी, क्योंकि वे किसी तात्कालिक राहत की नहीं, बल्कि लंबे समय तक टिकने वाले समाधान की तलाश में थे।

Indirapuram क्लिनिक तक पहुँचना उनके लिए सिर्फ एक अपॉइंटमेंट नहीं था, बल्कि एक नई उम्मीद के साथ उठाया गया कदम था। वहाँ पहुँचकर उन्हें पहली बार यह महसूस हुआ कि यहाँ उनकी बीमारी को एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में देखा जा रहा है।

ϳԹ का Diabetes Management Program क्या है और यह सामान्य इलाज से कैसे अलग है?

जीवा आयुर्वेद में मधुमेह का इलाज सिर्फ दवाओं तक सीमित नहीं है। यहाँ इसे एक संपूर्ण प्रबंधन के रूप में देखा जाता है। इसका मतलब है कि शरीर, मन, भोजन और दिनचर्या—सब पर एक साथ काम किया जाता है।

सामान्य इलाज में अक्सर ध्यान सिर्फ इस बात पर होता है कि शर्करा का आँकड़ा कम हो जाए। लेकिन जीवा आयुर्वेद में सवाल यह होता है कि शर्करा बढ़ ही क्यों रही है। अभिषेक मल के मामले में भी यही दृष्टिकोण अपनाया गया।

यहाँ शरीर की प्रकृति को समझने पर विशेष ज़ोर दिया गया। हर व्यक्ति का शरीर अलग तरह से काम करता है। किसी में पाचन कमज़ोर होता है, किसी में तनाव ज़्यादा असर डालता है। इलाज उसी अनुसार तय किया जाता है, न कि किसी तय ढाँचे में फिट करके।

डायबिटॶज़ को जड़ से देखने का मतलब यह था कि सिर्फ बाहर से नियंत्रण नहीं, बल्कि अंदरूनी संतुलन बनाना। भोजन, आदतें और शरीर की प्रतिक्रिया—हर पहलू पर ध्यान दिया गया। इससे अभिषेक मल को यह भरोसा मिला कि इलाज एक दिशा में आगे बढ़ रहा है, न कि बस शर्करा को दबाने की कोशिश हो रही है।

इस पूरे कार्यक्रम की सबसे अहम बात थी मरीज़-केंद्रित अप्रोच। इलाज डॉक्टर की सुविधा के अनुसार नहीं, बल्कि मरीज़ की ज़रूरत के अनुसार तय किया गया। यही कारण था कि अभिषेक मल खुद को इस प्रक्रिया से जुड़ा हुआ महसूस करने लगे।

100 दिनों में HbA1c 8.5 से 5.5 कैसे पहुँचा?

इलाज एक दिन में नहीं बदला, बल्कि चरणों में आगे बढ़ा। पहले शरीर को समझा गया, फिर उसे सही दिशा दी गई। शुरुआती दिनों में नियमित निगरानी, भोजन में सुधार और दिनचर्या में संतुलन पर ध्यान दिया गया। इसके बाद आयुर्वेदिक उपचार को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया गया।

हर कुछ दिनों में रिपोर्ट देखी गई। यह बदलाव अचानक नहीं था, बल्कि लगातार और स्थिर था। शुगर के आँकड़े धीरे-धीरे नीचे आने लगे। यही निरंतरता आगे चलकर एचबीए1सी में साफ़ दिखाई दी।

100 दिनों के भीतर HbA1c 8.5 से घटकर 5.5 तक आ गया, जो सामान्य सीमा में माना जाता है। यह बदलाव सिर्फ एक संख्या नहीं था, बल्कि यह इस बात का संकेत था कि शरीर ने फिर से संतुलन बनाना शुरू कर दिया है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्हें यह भरोसा मिला कि बीमारी को दबाया नहीं जा रहा, बल्कि उसे समझकर संभाला जा रहा है। अगर आप भी लंबे समय से बढ़ती शुगर और बढ़ती दवाओं से परेशान हैं, तो यह अनुभव आपको नई दिशा सोचने पर मजबूर कर सकता है।

किन लोगों के लिए जीवा आयुर्वेद का Diabetes Management Program उपयोगी हो सकता है?

यह कार्यक्रम उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जिनकी शुगर लंबे समय से नियंत्रण में नहीं आ रही है। अगर आप नियमित दवाइयाँ लेने के बावजूद संतोषजनक परिणाम नहीं देख पा रहे हैं, तो यह एक संकेत हो सकता है कि शरीर को अलग तरह से समझने की ज़रूरत है।

यह उन लोगों के लिए भी सहायक हो सकता है जो दवाओं की डोज़ बढ़ने से परेशान हैं। जब हर रिपोर्ट के साथ दवा बढ़ती जाती है, तो मन में डर और असहजता पैदा होना स्वाभाविक है। ऐसे में एक समग्र और संतुलित रास्ता राहत दे सकता है।

जो लोग प्राकृतिक और सुरक्षित विकल्प की तलाश में हैं, उनके लिए भी यह कार्यक्रम उपयुक्त हो सकता है। यहाँ इलाज सिर्फ दवा पर निर्भर नहीं करता, बल्कि भोजन, दिनचर्या और शरीर की प्रकृति को साथ लेकर चलता है।

सबसे अहम बात यह है कि यह उन लोगों के लिए है जो लंबे समय का समाधान चाहते हैं। तात्कालिक राहत से आगे बढ़कर अगर आप चाहते हैं कि शरीर खुद संतुलन बनाए, तो अभिषेक मल की यह यात्रा आपको सोचने का एक नया नज़रिया दे सकती है।

निष्कर्ष

अभिषेक मल की यह यात्रा सिर्फ़ एक रिपोर्ट बदलने की कहानी नहीं है, बल्कि सोच बदलने की मिसाल है। डायबिटॶज़ के मामले में अक्सर ध्यान सिर्फ़ शर्करा के आँकड़ों पर टिक जाता है, जबकि असली ज़रूरत शरीर को पूरी तरह समझने की होती है। अभिषेक मल के अनुभव ने यह दिखाया कि जब इलाज व्यक्ति के अनुसार तय होता है, तो परिणाम सिर्फ़ काग़ज़ पर नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में महसूस होते हैं।

अगर आप भी डायबिटॶज़ से जूझ रहे हैं, बढ़ती दवाओं या बिगड़ती रिपोर्ट से परेशान हैं, तो यह कहानी आपको रुककर सोचने का मौका देती है। आज ही जीवा के प्रमाणित डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श के लिए संपर्क करें। डायल करें 0129-4264323

FAQs

  1. क्या डायबिटॶज़ पूरी तरह ठीक हो सकती है?

डायबिटॶज़ में शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। सही इलाज, भोजन और दिनचर्या से शुगर नियंत्रित हो सकती है और रिपोर्ट सामान्य रेंज में आ सकती है।

  1. क्या आयुर्वेदिक इलाज सुरक्षित होता है?

हाँ, जब इलाज योग्य वैद्य की देखरेख में हो, तो आयुर्वेद शरीर की प्रकृति के अनुसार काम करता है और लंबे समय तक सुरक्षित माना जाता है।

  1. क्या इस इलाज में दवाएँ छोड़नी पड़ती हैं?

हर व्यक्ति का मामला अलग होता है। बिना डॉक्टर की सलाह के दवा बंद नहीं करनी चाहिए। आयुर्वेद में धीरे-धीरे संतुलन बनाने पर ध्यान दिया जाता है।

  1. क्या डायबिटॶज़ में सिर्फ़ भोजन बदलना काफी है?

सिर्फ़ भोजन नहीं, बल्कि दिनचर्या, तनाव और शरीर की आदतें भी असर डालती हैं। जब ये सब साथ सुधरते हैं, तब शुगर बेहतर नियंत्रित होती है।

  1. कितने समय में शुगर कंट्रोल में आना शुरू होती है?

यह शरीर की स्थिति पर निर्भर करता है। सही मार्गदर्शन में कुछ हफ्तों में सुधार दिखने लगता है, जबकि स्थायी संतुलन में थोड़ा समय लग सकता है।

Related Blogs

Top Ayurveda Doctors

Social Timeline

Our Happy Patients

  • Sunita Malik - Knee Pain
  • Abhishek Mal - Diabetes
  • Vidit Aggarwal - Psoriasis
  • Shanti - Sleeping Disorder
  • Ranjana - Arthritis
  • Jyoti - Migraine
  • Renu Lamba - Diabetes
  • Kamla Singh - Bulging Disc
  • Rajesh Kumar - Psoriasis
  • Dhruv Dutta - Diabetes
  • Atharva - Respiratory Disease
  • Amey - Skin Problem
  • Asha - Joint Problem
  • Sanjeeta - Joint Pain
  • A B Mukherjee - Acidity
  • Deepak Sharma - Lower Back Pain
  • Vyjayanti - Pcod
  • Sunil Singh - Thyroid
  • Sarla Gupta - Post Surgery Challenges
  • Syed Masood Ahmed - Osteoarthritis & Bp
Book Free Consultation Call Us