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टीबी का आयुर्वेदिक इलाज – इम्युनिटी बढ़ाने वाले हर्बल उपाय

Information By Dr. Keshav Chauhan

टीबी एक ऐसा रोग है जो शरीर की शक्ति को धीरे-धीरे कम करता है और व्यक्ति को भीतर से थका देता है। कई लोगों को लगता है कि यह बस बुखार या खाँसी जैसी कोई साधारण समस्या है, लेकिन असल में यह संक्रमण बहुत गहराई तक असर करता है। जब आप इसे समय पर न समझें तो यह फेफड़ों की मजबूती कम कर देता है और शरीर का वज़न भी अचानक घटने लगता है। टीबी शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को इतना कमज़ोर कर देती है कि साधारण थकान भी बड़ी लगने लगती है और साँस छोटी पड़ने लगती है।

कई रोगी यह अनुभव करते हैं कि खाने की इच्छा कम हो रही है, रात में पसीना आता है और शरीर का तापमान हल्का बढ़ा हुआ रहता है। ये संकेत बताते हैं कि शरीर लगातार संक्रमण से लड़ रहा है और आपको अतिरिक्त पोषण, विश्राम और दिमागी स्थिरता की ज़रूरत है। इसी जगह आयुर्वेद शरीर को संभालने का काम करता है। आयुर्वेद टीबी को सिर्फ फेफड़ों की बीमारी नहीं मानता बल्कि इसे रोग-प्रतिरोधक शक्ति, धातुओं और अग्नि की कमजोरी से जुड़ा हुआ समझता है।

जब आपका शरीर कमज़ोर होता है तब संक्रमण को रोकने की क्षमता भी धीमी हो जाती है। इसलिये आयुर्वेद में उपचार का उद्देश्य रोग की जड़ को नहीं बल्कि शरीर की शक्ति को मज़बूत करके आपको जल्दी ठीक होने में मदद देना होता है। यह दृष्टि रोगी के मन और शरीर दोनों को संभालती है क्योंकि लंबे समय तक चलने वाले रोग मन की ऊर्जा को भी कम कर देते हैं।

टीबी एक ऐसा रोग है जिसमें सुधार धीरे-धीरे आता है। आपको लगता है कि कभी दिन ठीक है, तो कभी अचानक कमजोरी बढ़ जाती है। यही प्राकृतिक उतार-चढ़ाव टीबी रोगियों में आम है। आयुर्वेद का उद्देश्य इस उतार-चढ़ाव को स्थिर करना है ताकि आपका शरीर उपचार को अच्छे से स्वीकार कर सके।

टीबी क्या है – शरीर को भीतर से कमज़ोर करने वाला संक्रमण?

टीबी एक संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह संक्रमण धीरे-धीरे शरीर की ताकत को कम करता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता को धीमा कर देता है। जब श्वास नली और फेफड़े लम्बे समय तक इस संक्रमण को झेलते हैं तब शरीर को सामान्य साँस लेने में भी मेहनत लग सकती है।

टीबी के बारे में आपको कौन-सी बातें जानना ज़रूरी हैं

  • यह संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ता है
  • फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों पर भी असर कर सकता है
  • वज़न कम होना और भूख घट जाना इसके सबसे आम संकेत हैं
  • यह शरीर की प्राण-शक्ति को कम कर देता है
  • लंबे समय तक खाँसी रहना इस रोग की पहली चेतावनी होती है

टीबी को आयुर्वेद में उर्ध्व जत्रु और प्राण वायु की विकृति से जुड़ा माना जाता है। जब प्राण वायु और अग्नि कमज़ोर हो जाते हैं तब शरीर संक्रमण के सामने टिक नहीं पाता।

टीबी के मुख्य लक्षण

टीबी के लक्षण कई बार सामान्य सर्दी या कमजोरी जैसे लगते हैं, पर जब ये लंबे समय तक बने रहें तो इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। टीबी में शरीर लगातार संक्रमण से लड़ रहा होता है, इसलिए थकान, कमजोरी और साँस फूलना बहुत जल्दी दिखने लगता है।

सामान्य लक्षण

  • लगातार दो सप्ताह से अधिक खाँसी
  • कभी-कभी खाँसी में खून आना
  • वज़न तेजी से घट जाना
  • रात में पसीना आना
  • हल्का बुखार
  • साँस फूलना
  • भूख में असामान्य कमी
  • सीने में भारीपन
  • कमज़ोरॶ

आयुर्वेद इन लक्षणों को फेफड़ों, अग्नि और ओजस की कमी से जोड़कर देखता है। जब ओजस घटता है तब शरीर संक्रमणों को रोकने में असमर्थ हो जाता है।

टीबी क्यों होती है?

टीबी एक संक्रामक रोग है, इसलिए मुख्य कारण एक संक्रमित व्यक्ति से फैलना है। लेकिन हर व्यक्ति जिसे संपर्क हुआ है वह टीबी से बीमार नहीं होता। इसका मतलब यह है कि रोग-प्रतिरोधक क्षमता का स्तर बहुत बड़ा रोल निभाता है।

जोखिम बढ़ाने वाले प्रमुख कारण

  • कमज़ोर इम्युनिटी
  • लंबे समय तक कुपोषण
  • बहुत धूम्रपान
  • भीड़भाड़ वाली जगहों में रहना
  • स्वच्छ हवा और सूरज की रोशनी का अभाव
  • मधुमेह या किसी और दीर्घकालिक रोग का इतिहास
  • अतिसारी कमजोरी
  • लगातार मानसिक तनाव

इन सभी कारणों से शरीर की रक्षा प्रणाली धीरे-धीरे थकने लगती है और संक्रमण को रोकने की क्षमता कम हो जाती है।

टीबी में आधुनिक चिकित्सा क्यों अनिवार्य है?

यह बात बार-बार दोहराना ज़रूरी है क्योंकि कई लोग पूर्ण प्राकृतिक उपचार की इच्छा रखते हैं। लेकिन टीबी ऐसा संक्रमण है जिसे अकेले घरेलू उपायों या जड़ी-बूटियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

टीबी का प्राथमिक उपचार एंटी टीबी दवाओं से ही होता है जिन्हें छोड़ना कभी भी ठीक नहीं। आयुर्वेद इन दवाओं के साथ मिलकर शरीर की रिकवरी में सहायक भूमिका निभाता है।

आपको बीमारी के दौरान ऊर्जा, भूख, पाचन, नींद और मानसिक स्थिरता की बहुत ज़रूरत होती है। यही सारी चीज़ें आयुर्वेद मजबूती से सपोर्ट करता है।

टीबी में आयुर्वेद की भूमिका

टीबी में आयुर्वेद कोई भी ऐसा उपचार नहीं देता जो आधुनिक चिकित्सा को बदल दे। यह बात दोहराना ज़रूरी है कि टीबी का अनिवार्य उपचार एंटी टीबी दवाएँ ही हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन दवाओं को लेते-लेते कई रोगी बहुत कमज़ोर महसूस करने लगते हैं। शरीर को भोजन नहीं सुहाता, पाचन बिगड़ जाता है और मन भारी होने लगता है। इसी जगह आयुर्वेद शरीर को सहारा देता है और रिकवरी की गति बढ़ाता है।

आयुर्वेद में टीबी की तुलना धातु क्षय से की जाती है। जब शरीर की अग्नि और ओजस दोनों कमज़ोर हो जाते हैं तब संक्रमण मिलने पर शरीर जल्दी हार मानने लगता है। आयुर्वेद का उद्देश्य इस कमजोरी को रोकना है ताकि एंटी टीबी दवाओं का असर शरीर बेहतर ढंग से स्वीकार कर सके।

टीबी में इम्युनिटी क्यों गिरती है?

टीबी में इम्युनिटी गिरना एक बहुत आम चीज़ है और यही कारण है कि संक्रमण लंबा चलता है। जब शरीर लगातार भीतर से लड़ता रहता है तब अग्नि धीमी होती है और आहार रस अच्छी तरह नहीं बन पाता। जब आहार रस कम बनेगा तो सातों धातुएँ भी कमज़ोर होंगी।

इम्युनिटी कम होने के आयुर्वेदिक कारण

  • अग्नि का मंद होना
  • अधिक पित्त और वायु का असंतुलन
  • धातु क्षय
  • ओजस का घटना
  • अत्यधिक तनाव
  • नींद की कमी

आप इन बिंदुओं को आसानी से अपने अनुभव से जोड़ सकते हैं क्योंकि टीबी रोगी प्रायः अचानक बहुत कमज़ोर महसूस करने लगते हैं।

टीबी में शरीर को भीतर से मजबूत करने वाली आयुर्वेदिक औषधियाँ

यह वह हिस्सा है जहाँ आयुर्वेद सच में चमकता है। ये जड़ी-बूटियाँ संक्रमण को सीधे नहीं मारतीं लेकिन शरीर की रिकवरी बहुत तेज करती हैं और एंटी टीबी उपचार को सहारा देती हैं।

1. अश्वगंधा

अश्वगंधा ओजस को बढ़ाती है और शरीर को थकावट से उबारती है।
कई रोगियों को इसे लेने से भूख और ऊर्जा दोनों में सुधार महसूस होता है।

2. पिप्पली

पिप्पली फेफड़ों में कफ को साफ करती है और साँस लेने की क्षमता बढ़ाने में मदद देती है।
टीबी में इसकी छोटी खुराक अग्नि को भी बढ़ाती है।

3. वासा (अडूसा)

वासा खाँसी शांत करती है और फेफड़ों की सूजन को कम करने में सहायक है।

4. गिलोय

गिलोय शरीर की रक्षा क्षमता बढ़ाती है और संक्रमण के प्रभाव को कम करती है।

5. शतावरी

टीबी लंबा चलने पर शरीर को सुखा देती है। शतावरी शरीर में पौष्टिकता लाती है और धातुओं को स्थिर करती है।

6. हरिद्रा (हल्दी)

हल्दी सूजन कम करती है और फेफड़ों की जलन को घटाती है। यह ओजस की रक्षा में भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

7. त्रिफला

यह शरीर के विषाक्त पदार्थ कम करती है और पाचन सुधारती है जिससे एंटी टीबी उपचार का असर बेहतर होता है।

टीबी में कौन-से आयुर्वेदिक योग उपयोगी हो सकते हैं?

यहाँ भी वही नियम लागू होता है कि इन्हें एंटी टीबी उपचार के साथ ही सोचना चाहिए।

उपयोगी योग

  • अश्वगंधा चूर्ण
  • शतावरी चूर्ण
  • गिलोय घन
  • पिप्पली चूर्ण
  • वासा आधारित योग
  • च्यवनप्राश (यदि पित्त अधिक न हो)

इनका उद्देश्य शरीर की ऊर्जा और धातुओं को सुधारना है।

टीबी में उचित भोजन – क्या खाएँ ताकि शरीर तेजी से संभले

टीबी के दौरान सही आहार आधा उपचार है। शरीर को हर दिन नई ऊर्जा चाहिए क्योंकि संक्रमण लगातार ऊर्जा खा रहा होता है।

खाएँ

  • घी युक्त दलिया
  • खिचड़ी
  • मूंग दाल
  • हल्का उबला हुआ चावल
  • पका हुआ पपीता
  • भाप में पकी सब्ज़ियाँ
  • नारियल पानी
  • गर्म पानी
  • हल्का गरम दूध (यदि पित्त न बढ़े)

आयुर्वेद में घी को ओजस बढ़ाने वाला माना गया है, लेकिन हर रोगी इसे तुरंत नहीं सहन करता, इसलिए धीरे-धीरे शामिल करना बेहतर है।

टीबी में किन चीज़ों से बचना चाहिए?

बचें

  • बहुत तीखा भोजन
  • बहुत तला हुआ भोजन
  • ठंडा पानी
  • आइसक्रॶम
  • ढेर सारी चीनी
  • देर रात सोना
  • बहुत थकाने वाला काम
  • लगातार तनाव

ये चीज़ें फेफड़ों पर दबाव बढ़ाती हैं और पाचन कमज़ोर कर देती हैं जिससे रोगी की ऊर्जा और घट जाती है।

टीबी में दिनचर्या – कैसी जीवनशैली शरीर की रिकवरी तेज करती है

टीबी के दौरान पूरी दिनचर्या शांत, हल्की और संतुलित रखनी चाहिए। शरीर के अंदर लगातार लड़ाई चल रही होती है, इसलिए बाहरी गतिविधियों में आपको कोमलता रखनी ही चाहिए।

अनुशंसित दिनचर्या

  • सुबह गुनगुना पानी
  • तीन समय हल्का भोजन
  • दिन में थोड़़ा आराम
  • धूप में बैठना
  • हल्का साँस अभ्यास
  • ध्यान
  • स्निग्ध आहार
  • जल्दी सोना

इनमें से धूप सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि टीबी रोगी अक्सर सूर्य के अभाव के कारण और कमज़ोर होते जाते हैं।

टीबी में आयुर्वेदिक थैरेपी – शरीर को मजबूत करने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाएँ

टीबी ऐसा संक्रमण है जिसमें बहुत ज़्यादा शोधन या भारी पंचकर्म की अनुमति नहीं दी जाती क्योंकि शरीर पहले से ही कमज़ोर होता है। आयुर्वेद का सिद्धांत स्पष्ट कहता है कि कमज़ोर रोगी पर भारी प्रक्रियाएँ नहीं करनी चाहिए। इसलिए टीबी में केवल वे थैरेपी अपनाई जाती हैं जो शरीर को संभालें और फेफड़ों को आराम दें।

1. अभ्यंग

बहुत हल्की, धीमी गति से की जाने वाली तेल मालिश शरीर की थकान और मानसिक तनाव को कम करती है। इससे धातु स्थिर होती हैं और नींद में सुधार होता है।

2. सौम्य स्वेदन

हल्की भाप फेफड़ों के आसपास की जकड़न कम करती है और शरीर को गर्माहट देती है।
कठोर स्वेदन टीबी रोगी के लिये उचित नहीं है।

3. नस्य (चयनित रोगियों में)

कुछ रोगियों में औषधीय घृत या सौम्य नस्य से श्वसन मार्ग खुलने में मदद मिलती है।
यह केवल विशेषज्ञ की सलाह पर ही दिया जाता है।

4. धूपन

नीम, राल, हरिद्रा जैसे घटकों से किया गया सौम्य धूपन वातावरण को शुद्ध रखता है और श्वसन पथ पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

5. हर्बल घृत सेवन

  • शतावरी घृत
  • वासा घृत
  • महाशंख घृत

इनका उद्देश्य फेफड़ों की सूक्ष्म सूजन को शांत करना और शरीर की स्निग्धता को बढ़ाना है।

टीबी में घर पर किये जाने वाले सहायक उपाय

टीबी रोगी को बिल्कुल भी भारी या थकाने वाले घरेलू उपाय नहीं करने चाहिए। सिर्फ वे उपाय अपनाने चाहिए जिनसे ऊर्जा बढ़े और शरीर हल्का महसूस करे।

लाभकारी उपाय

  • सुबह गुनगुना पानी
  • दोपहर में हल्का विश्राम
  • कमरे में धूप आने देना
  • बहुत ठंडा जल न पीना
  • फेफड़ों पर हल्का गरम सेक

इन उपायों से फेफड़ों में गहराई तक गर्माहट पहुँचती है जो टीबी में उपयोगी मानी जाती है।

टीबी में साँस और ऊर्जा सुधारने के लिये हल्के प्राणायाम

टीबी में तीव्र प्राणायाम बिल्कुल नहीं करना चाहिए। केवल हल्के और सौम्य अभ्यास ही अपनाए जाते हैं।

उपयुक्त प्राणायाम

  • गहरी लंबी साँस
  • अनुलोम-विलोम (बहुत हल्की गति में)
  • भुजंगासन
  • सूर्य में कुछ समय बैठना

ये अभ्यास फेफड़ों में रक्तप्रवाह बढ़ाते हैं और मन को स्थिर रखते हैं।
कठोर योग, जोरदार साँस अभ्यास और लंबा कसरत टीबी रोगी को हानि पहुँचा सकता है।

टीबी में क्या नहीं करना चाहिए

यह हिस्सा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कई लोग ऊर्जा बढ़ाने के चक्कर में गलत चीज़ें कर जाते हैं।

बचें

  • एंटी टीबी दवाएँ छोड़ना
  • उपवास
  • तीखे मसाले
  • बहुत ठंडा भोजन
  • धूल भरा वातावरण
  • धूम्रपान
  • देर रात सोना
  • भारी कसरत
  • गहरी भाप या कठोर स्वेदन

ये सभी चीज़ें फेफड़ों पर दबाव बढ़ाती हैं और रिकवरी को धीमा कर देती हैं।

टीबी रोगियों के लिये आयुर्वेदिक आहार दिनचर्या

जब शरीर कमज़ोर होता है तब दिनचर्या जितनी सरल और स्थिर होगी उतना ही शरीर तेजी से सुधरेगा।

सुझाव

  • सुबह हल्का गर्म जल
  • दोपहर में पौष्टिक भोजन
  • रात में बहुत हल्का भोजन
  • भोजन में घी को धीरे-धीरे शामिल करना
  • दिन में कम से कम आधा घंटा धूप
  • तनाव कम करने के लिये ध्यान
  • भोजन और दवा का नियमित समय

टीबी रोगियों में अनियमितता बहुत नुकसान करती है। शरीर पहले से ही कमजोरी से लड़ रहा है।

निष्कर्ष

टीबी एक ऐसा संक्रमण है जो शरीर की ऊर्जा, फेफड़ों की क्षमता और मन की स्थिरता तीनों को चुनौती देता है। इस रोग में आधुनिक चिकित्सा का उपचार बिल्कुल अनिवार्य है और एंटी टीबी दवाएँ ही संक्रमण को खत्म करती हैं। आयुर्वेद का उद्देश्य इस उपचार को मजबूत बनाना है ताकि आपका शरीर दवाओं को अच्छे से स्वीकार करे और कमज़ोर न पड़े। जब आप पौष्टिक भोजन, हल्की दिनचर्या, सौम्य थैरेपी और इम्युनिटी बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियाँ अपनाते हैं तब शरीर रिकवरी की ओर तेजी से बढ़ता है। टीबी में सुधार थोड़ा धीमा होता है पर आयुर्वेद इस सफर को सरल और सहने योग्य बनाता है। आपका मन और शरीर दोनों धीरे-धीरे मजबूत होते हैं और जीवन फिर से सामान्य गति पकड़ता है।

अगर आप भी टीबी या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज ही हमारे प्रमाणित जीवा डॉक्टरों से व्यक्तिगत परामर्श लें। कॉल करें — 0129-4264323

FAQs

1. क्या टीबी केवल फेफड़ों को ही प्रभावित करती है?

नहीं। यह शरीर के अन्य हिस्सों पर भी असर कर सकती है जैसे हड्डियाँ या ग्रंथियाँ।

2. क्या आयुर्वेद से टीबी ठीक हो सकती है?

टीबी पूरी तरह एंटी टीबी दवाओं से ही ठीक होती है। आयुर्वेद केवल रिकवरी में मदद करता है।

3. क्या टीबी रोगी घी खा सकते हैं?

हाँ, लेकिन बहुत हल्की मात्रा में और धीरे-धीरे। पित्त अधिक होने पर घी कम देना होता है।

4. क्या योग टीबी में सुरक्षित है?

हाँ, लेकिन केवल हल्के और शांत योग ही। जोरदार कसरत नुकसान कर सकती है।

5. क्या टीबी रोगी च्यवनप्राश ले सकते हैं?

कई रोगी ले सकते हैं, पर पित्त अधिक हो तो सावधानी रखनी पड़ती है।

 

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